रमज़ान-उल-मुबारक : जहन्नम की आग से आज़ादी का है आख़िरी अशरा।
Faisal Rahmani
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रमज़ान-उल-मुबारक : जहन्नम की आग से आज़ादी का है आख़िरी अशरा।


फ़ैसल रहमानी


रमज़ान-उल-मुबारक अरबी कैलेंडर का नौंवा महीना है। इसे अल्लाह का महीना कहा जाता है। इस महीने को दस-दस दिनों के तीन हिस्सों में बांटकर इसकी ख़ास फ़ज़ीलत बयां की गई है। 


इस्लाम में रमज़ान के शुरुआती दस दिन या अशरे को रहमत का अशरा बताया गया है। दूसरा अशरा मग़फ़िरत का है जो बीस रमज़ान को ख़त्म हो गया।


वहीं, इक्कीस रमज़ान से आख़िरी अशरा शुरू हो गया है। इस आख़िरी अशरे को जहन्नम से नजात का अशरा कहा जाता है।


इस्लामी धर्मग्रंथों में आख़िरी अशरे की बहुत फज़ीलत बताई गई है। इस अशरे के दौरान एक रात ऐसी बताई गई है, जिसमें की गई इबादत हज़ार माह की इबादत से बढ़कर होती है। इसे लैलतुल क़द्र यानी सम्मान या आदर करने की रात कहा जाता है। 


क़ुरआन में सूरह क़द्र में इस रात की अहमियत बताई गई है। इसी रात में क़ुरआन पाक के नाज़िल होने की शुरुआत हुई थी। इस रात को पाने के लिए मुसलमान आख़िरी अशरे की हर ताक़ रात यानी विषम तारीख़ अर्थात 21, 23, 25, 27 और 29 तारीख़ वाली रात में जागकर फ़ज्र यानी सूर्योदय से पहले तक इबादत करते हैं। 


इस रात को पाने के लिए आख़िरी अशरे में एतेकाफ़ भी किया जाता है। एतेकाफ़ का अर्थ रुकना और ठहरना है। इस दौरान मोमिन अल्लाह की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए इबादत व ज़िक्र-ओ-अज़्कार करने की नीयत से मख़्सूस तरीक़े से कुछ दिनों के लिए मस्जिद में ठहरता है। 


पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की पत्नी हज़रत आयशा रजि. ने फ़रमाया है कि आप ने अपने देहांत के वक़्त तक रमज़ान के आख़िरी अशरे में एतेकाफ़ किया। जिस साल आप का देहांत हुआ उस साल दो अशरो का एतेकाफ़ किया। एतेकाफ़ करने वाले से अल्लाह ख़ुश होता है और दोज़ख़ से दूर कर दिया जाता है। 


रमजान का पाक महीना सब्र-ओ-तहम्मुल का महीना है। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि हलाक हो जाए वह शख़्स जो रमज़ान का पाक महीना पाकर भी अपने आप की बख़्शिश न करवा ले। अल्लाह पाक फ़रमाते हैं कि जब मेरा कोई बंदा मेरी पसंदीदा और फ़र्ज़ की हुई चीज़ों के ज़रिया मेरी क़ुरबत हासिल करता है, नफ़िल नमाज़ों की अदायगी करता है तो मैं उससे मोहब्बत करने लगता हूं। उस के लिए आंख, कान और हाथ बन जाता हूं। अगर वह किसी चीज़ को मुझ से मांगता है तो मैं उस को देता हूं। वह मेरी पनाह में आना चाहता है तो पनाह भी देता हूं। मस्जिद हर परहेज़गार का घर है। 


अल्लाह ने हर उस शख़्स को जिस का घर मस्जिद है, ख़ुशी रहमत और पुल सिरात से गुज़ार कर रज़ामंदी यानी जन्नत की गारंटी ली है। 


रातों में जाग कर इबादत, तिलावत और नफ़िल नमाज़ों की अदायगी करके लैलतुल क़द्र जैसी अज़ीम रात की तलाश की जाती है। जिसमें इबादत का सवाब एक हज़ार रात के इबादतों से भी ज़्यादा है। 


इन सब विशेषताओं के साथ रमज़ान का मुबारक माह गुज़र रहा है जो हर रोज़ेदार के दिल-ओ-दिमाग़ और ईमान को ऐसा मश्क़ यानी अभ्यास करा देता है जिससे हर रोज़ेदार मुसलमान पूरे साल अपने ईमान को ताज़ा रखता है और गुनाहों से दूर रहने की कोशिश करता है।


इस्लामी विद्वानों के मुताबिक़, इस एक दिन के एतेकाफ़ का अज्र या सवाब बहुत ही ज़्यादा है। इसके एवज़ में अल्लाह तआला बंदे से जहन्नम को तीन ख़ंदक दूर कर देता है। यानी प्रत्येक रात की इबादत का सवाब इतना ज़्यादा बताया गया है कि जन्नत या स्वर्ग मिलने की संभावना तय मानी जाती है।


एक हदीस में लैलतुल क़द्र के बारे में बताया गया है कि यह रात हज़ार महीने की रात से भी अफ़ज़ल है। बीस रमज़ान के बीत जाने के बाद रात-दिन मस्जिद में रहकर दुनियावी ज़िंदगी से इतर इबादत करने का नाम एतेकाफ़ है, जिसमें इबादात के अलावा सोने, जागने, तिलावत-ए-क़ुरआन करने, ज़िक्र-ओ-अज़कार वग़ैरह सब कामों पर अल्लाह तआला ने बहुत ज़्यादा सवाब का वादा किया है।


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